अखंड भारत – देश और धर्म सर्वोपरि
– धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार –
अस्वीकरण
इस लेख में दी गई सारी जानकारी भारत के संविधान से अर्जित है। हम आपको ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस लेख की शब्दों को हमने आम भाषा में लिखा है ताकि सभी को आसानी से मतलब समझ आ सके। आज के इस लेख को भी अच्छे ढंग से समझाने और बताने के लिए हम अपने शब्द और भाषा का प्रयोग करके ही आपको सब जानकारी देंगे। ज्ञात हो कि इस आर्टिकल के सभी अनुच्छेद के मुख्य बातों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। अंत: ये मालूम हो कि हम (मैं या हमारी वेबसाइट) सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते हैं और हम सभी अपने महान देश (भारत) के संविधान का पालन करते हैं। इसलिए हम अपने सभी पाठकों से यह भी अनुरोध करते हैं कि इस प्लेटफॉर्म के किसी भी लेख की किसी भी शब्द अथवा पंक्ति को नकारात्मक तरीके से भी न लें।
नोट: यदि आप इस टॉपिक के पहले लेख को अब तक नही पढ़े है तो पहले आप उसको यहां से पढ़े फिर इसको पढ़े: “समान नागरिक संहिता – भारत” को 6 लेख श्रृंखला में विस्तृत केस स्टडी की घोषणा
यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 1 – भारतीय संविधान में मौजूद अनुच्छेद 25, 32 और 44
यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) को हिंदी भाषा में समान नागरिक संहिता कहा जाता है. इसे आप अपनी आम भाषा में समान नागरिक कानून के नाम से भी समझ सकते है। इसको आप धर्मनिर्पेक्ष कानून भी कह सकते है।
इसको जानने के लिए आज हम पढ़ेंगे इसका पहला भाग जिसमें हम हमारे के संविधान में मौजूद अनुच्छेद 25, 32 और 44 को अच्छे से समझेंगे ताकि हमें यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत से सम्बन्धित हर एक छोटी सी बड़ी बात पर अच्छे से जानकारी हो।
अनुच्छेद 25 (Aticle 25)
बस समझने के लिए बोले तो – भारत के संविधान का अनुच्छेद 25-28, जो घोषित करता है कि भारत किसी भी धर्म के खिलाफ भी नहीं है और इसलिए यह सभी व्यक्तियों को स्वतंत्रता का समान अधिकार देता है जिससे की कोई भी नागरिक अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए या नहीं भी करने के लिए स्वतंत्र है।
खंड 2 – उपखंड (क) –
लेकिन हमें अभी अनुच्छेद 25 को अच्छे से जानना है तो साहब, बात ये है कि हमारे देश के संविधान का अनुच्छेद 25 ये तो कहता है कि “ये भारत के हर एक नागरिक को स्वतंत्रता का समान अधिकार देता है जिससे की कोई भी नागरिक अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए या नहीं भी करने के लिए स्वतंत्र है।”
लेकिन इसी अनुच्छेद के धारा/खंड (2) और इसके उपखंड (क) ये कहती है कि “इस अनुच्छेद में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को विनियमित या प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा जो धार्मिक अभ्यास से जुड़ा हो सकता है।”
खंड (2) – उपखंड (ख) –
और इसी खंड (2) के उपखंड (ख) ये कहती है कि इस अनुच्छेद में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को ऐसी कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा जो सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।
– सांविधानिक उपचारों का अधिकार –
अनुच्छेद 32 (Article 32)
जब कोई व्यक्ति/संस्थान/या राज्य स्वयं भारत के संविधान के भाग 3 में प्रदत्त अधिकारों को बदलने का प्रयास करता है, तो अनुच्छेद 32 भारत के नागरिकों को इन अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय जाने का अधिकार देता है। राज्य को कोई भी कानून बनाने से मना किया गया है जो मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष कर सकता है।
मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्तियों को जाति, रंग, जाति, धर्म, जन्मस्थान या लिंग के बावजूद हर पहलू में समानता प्रदान करते हैं। इन अधिकारों का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 के तहत किया गया है।
अनुच्छेद 44 (Article 44)
नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता – समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आती है, जो यह बताती है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
अगर हम इसको भी अपनी भाषा में बोले और समझे तो ये पता चलता है कि हमारे देश के संविधान के पास पहले से ऐसे अनुच्छेद मौजूद है जो राज्य को भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने का इजाजत देती है।
⭐⭐ भाग 2 – शाह बानो केस – 1975 ⭐⭐
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