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Reading: यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 3 – The Hindu Marriage Act, 1955 (हिन्दू विवाह अधिनियम)
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यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 3 – The Hindu Marriage Act, 1955 (हिन्दू विवाह अधिनियम)

Ranjeet Jaiswal
Ranjeet Jaiswal
Last updated: 2022/07/23 at 7:37 AM
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7 Min Read
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अखंड भारत – देश और धर्म सर्वोपरि

यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: सम्पूर्ण जानकारी

प्रिय पाठकों, आप अभी यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 3 – The Hindu Marriage Act, 1955 (हिन्दू विवाह अधिनियम) को पढ़ने जा रहे है। लेकिन क्या आप इसके पहले वाले भागों को पढ़ा है? यदि हां तो आप इसको अभी पढ़ सकते है और यदि आप भी तक नहीं पढ़े है तो नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक कर पहले वाले भागों को पढ़े।

Contents
अखंड भारत – देश और धर्म सर्वोपरि यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: सम्पूर्ण जानकारीपरिचय- “समान नागरिक संहिता – भारत” फुल केस स्टडीभाग 1- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 1 – अनुच्छेद 25, 32 और 44भाग 2- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 2 – शाह बानो केस (1985)अस्वीकरणहिन्दू महिलाओं को प्राप्त अधिकार जैसे समानताहिन्दू कोड बिल – 1950 के दशक मेंहिन्दू विवाह अधिनियम – 1955आपके भाग 2 के सवाल का जवाब

परिचय- “समान नागरिक संहिता – भारत” फुल केस स्टडी

भाग 1- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 1 – अनुच्छेद 25, 32 और 44

भाग 2- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 2 – शाह बानो केस (1985)

अब आप आज के इस लेख (भाग 3) को पढ़ सकते है।

अस्वीकरण

इस लेख में दी गई सारी जानकारी भारत के संविधान से अर्जित है। हम आपको ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस लेख की शब्दों को हमने आम भाषा में लिखा है ताकि सभी को आसानी से मतलब समझ आ सके। आज के इस लेख को भी अच्छे ढंग से समझाने के लिए हम अपने शब्द और भाषा का प्रयोग करके ही आपको सब जानकारी देंगे। ज्ञात हो कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 एक बहुत बड़ी टॉपिक है, लेकिन हम आज इसके सिर्फ उन सभी मुख्य बिंदुओं को बताएंगे जो कि आपको ‘शाह बानो केस 1985 और सुप्रीम कोर्ट में शाह बानो की दलील’ को समझने में मदद करेगी। अंत: ये मालूम हो कि हम (मैं या हमारी वेबसाइट) सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते हैं और हम सभी अपने महान देश (भारत) के संविधान का पालन करते हैं। इसलिए हम अपने सभी पाठकों से यह भी अनुरोध करते हैं कि इस प्लेटफॉर्म के किसी भी लेख की किसी भी शब्द अथवा पंक्ति को नकारात्मक तरीके से भी न लें।

Shah Bano Case

हिन्दू महिलाओं को प्राप्त अधिकार जैसे समानता

अभी आपने शाह बानो केस 1985 का पूरा अध्यन किया है और आपका एक सवाल भी है कि रंजीत, अब आप ये बताओ कि हमनें पढ़ा है कि इस केस में शाह बानो ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील में कहीं थी कि “मुझे हमारे अधिकारों पर भी वही समानता चाहिए जो हिंदू महिलाओं को प्रात है।” – तो इसका मतलब क्या है और
हिंदू महिलाओं को क्या प्राप्त है?

चलिए अब हम आपको इसका भी जवाब देते है और उम्मीद है कि आपको भी समझ आ जाए।

  • आप जानते है कि हमारे देश के पास अपना भारत का संविधान है और सबके लिए और सब पर यह एक बराबर लागू होता है। लेकिन आपको मालूम होना चाहिए कि हमारे ही देश में धर्म-विशिष्ट नागरिक संहिताएँ हैं जो कुछ अन्य धर्मों के अनुयायियों को अलग से नियंत्रित करती हैं। क्योंकि नागरिक कानून आस्था से प्रभावित होते हैं।

हिन्दू कोड बिल – 1950 के दशक में

अब इस पर कुछ अधिक जानकारी दूं, उससे हम थोड़ा आपको हमारे देश में आए इस कानून के बारे में बात करेंगे। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि भारत में धर्म-विशिष्ट नागरिक संहिताएँ हैं जो कुछ अन्य धर्मों के अनुयायियों को अलग से नियंत्रित करती हैं। क्योंकि नागरिक कानून आस्था से प्रभावित होते हैं। जैसे आज भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ है, जिसपर हमने चर्चा भी किया है इसके भाग 2 में, वैसे ही हमारे देश में हिंदू पर्सनल लॉ भी था। लेकिन वर्ष 1950 के दशक में कई हिंदू कोड बिल्स पारित कर कानून बनाए गए थे जिनका उद्देश्य भारत में हिंदू व्यक्तिगत कानून को संहिताबद्ध और सुधारना था, एक सामान्य कानून कोड के पक्ष में धार्मिक कानून को समाप्त करना था। और वहीं से बना हमारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955।

The Hindu Marriage Act, 1955

हिन्दू विवाह अधिनियम – 1955

आपको बता दे कि हमारे देश में यह कानून वर्ष 18 मई, 1955 को आया था। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं और अन्य लोगों के बीच विवाह से संबंधित कानून में संशोधन और संहिताकरण करना था। इस अधिनियम ने हिंदुओं के सभी वर्गों के लिए कानून की एकरूपता लाई। इसी अधिनियम ने हिंदू व्यक्तिगत कानून में सुधार किया और महिलाओं को अधिक संपत्ति अधिकार, और स्वामित्व दिया। इसने महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में भी संपत्ति का अधिकार दिया।

इसी अधिनियम के तहत कहा गया है कि

  • ‘एक तलाकशुदा पत्नी को उसके पति से तलाक की राशि के रूप में आधी संपत्ति प्राप्त होगी और अगर पति जिम्मेदारी नौकरी में है तो उसे वो सब चीजें प्राप्त होंगी जिसके माध्यम से वो अपनी बताए पत्नी के गुजारे भत्ते को पूरी तरह निर्वाह कर सके।’

आपके भाग 2 के सवाल का जवाब

शाह बानो ने जब अपनी दलील में ये बात {“मुझे हमारे अधिकारों पर भी वही समानता चाहिए जो हिंदू महिलाओं को प्रात है।”} कही तो उनका ये दलील भारतीय संविधान के हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 से जुड़ता हुआ समझ में आने लगी। फिर इन्हीं अधिकारों (हिन्दू महिलाओं को दिए गए अधिकारें) और शाह बानो के दलील को ध्यान में रखकर शाह बानो केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और कहा कि मोहम्मद अहमद खान को आदेश दिया कि वह शाह बानो को हर महीने भरण-पोषण के लिए 179.20 रुपये दिया करेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में आगे तत्कालिन सरकार से भी ‘समान नागरिक संहिता’ की दिशा में आगे बढ़ने और कानून बनाने की अपील की।

आगे पढें: यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 4 – “समान नागरिक संहिता” के देश में आने और लागू होने के बाद क्या ये मामला भी कृषि कानूनों की तरह कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सकती है?

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Ranjeet Jaiswal May 13, 2022
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