ईद-उल-अजहा पर हमारी शुभकामनाएं
सबसे पहले आपको SRNewsGRoup के चीफ एडिटर Ranjeet Jaiswal व पूरी Ranjeetians टीम की ओर से ईद-उल-अजहा मुबारक हो.
NOTE: इस बार फिर मुस्लिम समाज के मौलानाओं ने अपील की है कि कोरोना वायरस को देखते हुए जारी गाइडलाइन का पालन करें और घरों में ही नमाज पढ़ें।
ईद-उल-अजहा का अर्थ
मुस्लिम समाज के प्रमुख त्योहारों में से एक ईद-उल-अजहा यानी बकरीद आज है. अगर आप इसके शाब्दिक अर्थ जानना चाहते है तो आपको बता दे कि यह एक कुर्बानी का त्योहार है जिसे अल्लाह की राह में दी जाती है. अजहा एक अरबी शब्द है, जिसके मायने होते हैं कुर्बानी, बलिदान, त्याग और ईद का अर्थ होता है त्योहार।
बकरीद होने की पृष्ठभूमि
इस त्योहार की पृष्ठभूमि में है अल्लाह का वह इम्तिहान जो उन्होंने हजरत इब्राहीम का लिया। हजरत इब्राहीम उनके पैगंबर थे। अल्लाह ने एक बार उनका इम्तिहान लेने के बारे में सोचा। उनसे ख्वाब के जरिए अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी। हर बाप की तरह हजरत इब्राहीम को भी अपने बेटे इस्माइल से मोहब्बत थी। यह मुहब्बत इस मायने में भी खास थी कि इस्माइल उनके इकलौते बेटे थे और वह भी काफी वक्त बाद पैदा हुए थे। उन्होंने फैसला लिया कि इस्माइल से ज्यादा उनको कोई प्रिय नहीं है और फिर उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान करने का फैसला किया।
फिर वे राह में आए शैतान के ऐसा न करने वाली बातों को इंकार करते हुए अपने बेटे के कुर्बानी के लिए आगे बढे.
फिर हुआ चमत्कार
बेटे की कुर्बानी देते हुए हजरत इब्राहीम अपनी आंख पर पट्टी बांध लेना बेहतर समझा ताकि बेटे का मोह कहीं अल्लाह की राह में कुर्बानी देने में बाधा न बन जाए। फिर उन्होंने जब अपनी आंख से पट्टी हटाई तो यह देखकर चौंक गए कि उनका बेटा सही सलामत खड़ा है और उसकी जगह एक बकरा कुर्बान हुआ है। तभी से बकरों की कुर्बानी का चलन शुरू हुआ। इसी वजह से इस त्योहार को बकरा ईद या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
कुर्बानी किन पर जरूरी
कुर्बानी हमेशा बकरीद की नमाज अदा करने के बाद दी जाती है. कुर्बानी उस हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, जो इन जानवरों को खरीदने की क्षमता रखते हैं। जिस भी जानवर की कुर्बानी दी जाती है, उसके गोश्त के तीन हिस्से करने जरूरी होते हैं। एक हिस्सा गरीबों को बांटना होता है। दूसरे हिस्से को रिश्तेदार में और तीसरे हिस्से को घर में रखने की अनुमति होती है।