Human Reproduction System- Twins Baby Mechanism:
Disclaimer: इस टॉपिक पर कुछ भी बात करने से पहले हम आपको यह बताना चाहते है कि एक जमाना ऐसा भी था जब जुड़वा बच्चों का पैदा होना लोगों को जादू-टोना लगता था. लेकिन आज जुड़वा बच्चों के पैदा होने के पीछे के विज्ञान को दुनिया समझ में आ चुकी है. और स्टडीज यह भी बताती हैं कि पिछले दो दशकों में जुड़वा बच्चों का पैदा होना काफी आम हो गया है. ये भी जान ले कि जुड़वा बच्चों में किसी एक को थप्पड़ लगे और दर्द दूसरे को हो, इसका कोई जीता जागता सबूत नहीं है धरती पर अभी तक, ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही होता है.
इस पुरे Twins Baby Mechanism को अच्छे से समझने के लिए आपको कुछ Biological Terms को समझनी होगी पहले, यही क्लिक कर पढ़िए सारे Terms.
अब जब आपने 1.1 वाला कंटेंट पढ़कर इससे संबंधित सारे Biological Terms को जान लिया है तो अब आगे की बात करते है.
जुड़वे बच्चे का जन्म:
प्रेग्नेंट महिलाएं डिलीवरी के दौरान कभी कभी एक साथ दो या तीन बच्चों को जन्म देती हैं.
अब सवाल उठता है कि मेडिकल साइंस के मुताबिक, एक स्पर्म से केवल एक ही बच्चा पैदा होता है तो फिर जुड़वा बच्चों के पीछे क्या लॉजिक है. क्या जुड़वा बच्चों के पीछे दो स्पर्म होते हैं. जी नहीं… ऐसा बिल्कुल नहीं होता, दरअसल पहले (1st) स्पर्म (Sperm) के अंदर जाते ही अंडा (Ovum) खुद को सील कर लेता है और उसके बाद वहां कोई दूसरा स्पर्म दाखिल नहीं हो सकता, तो फिर जुड़वा बच्चे कैसे पैदा होते हैं?
फिर भी कभी कभी कैसे पैदा होते हैं जुड़वा बच्चे?
देखिए अब तक जुड़वा बच्चे दो तरह के पैदा होते हैं; आइडेंटिकल ट्विन्स और नॉन-आइडेंटिकल ट्विन्स. मेडिकल भाषा में इन्हें मोनोजाइगोटिक (Monozygotic) और डायजाइगोटिक (Dizygotic) कहा जाता है. आमतौर पर महिला के शरीर में एक अंडा होता है जो एक स्पर्म से मिलकर एक भ्रूण (Embryo) बनाता है. लेकिन कई बार इस फर्टिलाइजेशन में एक नहीं बल्कि दो बच्चे तैयार हो जाते हैं.
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आपको यहां ये ध्यान देने होंगे कि जब ये फर्टिलाइजेशन एक ही अंडे से तैयार हुआ था इसलिए इनका प्लेसेंटा (Placenta) भी एक ही होता है. इस अवस्था में जुड़वा या तो दो लड़के पैदा होते हैं या फिर दो लड़कियां. ये दिखने में अमूमन एक जैसे होते हैं और इनका डीएनए भी एक दूसरे से काफी मिलता जुलता होता है. हालांकि इनके फिंगर प्रिंट्स अलग-अलग होते हैं. इस तरह के बच्चों को “मोनोजाइगोटिक ट्विन्स (Identical Twins)” कहा जाता है.
लेकिन कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि औरत के शरीर में एक बार में ही दो अंडे बन जाएं जिन्हें फर्टिलाइज करने के लिए दो स्पर्म की जरूरत पड़ती है. इसमें दो अलग-अलग भ्रूण तैयार होते हैं. इस स्तिथि में पैदा होने वाले बच्चों में खुद की अपनी-अपनी अलग प्लेसेंटा होती है. इसमें एक लड़का और एक लड़की भी हो सकती है. आम भाषा में बोले तो ये दो भाई-बहन होते है जिनका जन्म एक साथ हुआ है और इन्हें “डायजाइगोटिक ट्विन्स (Non-Identical Twins)” कहते हैं.
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Note: इसमें एक-तिहाई मोनोजाइगोटिक और दो-तिहाई डाइजायगोटिक बच्चे होते हैं.
आखिर क्यों होते है जुड़वा बच्चे?
सोध के मुताबिक, पहले की तुलना में वर्तमान औरतें देर से मां बन रही हैं. 30 साल की उम्र के बाद ऐसा ज्यादा देखने को मिलता है. दूसरी वजह है आईवीएफ यानी आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन जैसी तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल. इनमें भी एक से ज्यादा बच्चे पैदा होने की संभावना बनी रहती है.
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अब सवाल यह भी है कि जब फर्टिलाइजेशन का तरीका वही है तो ये कैसे तय होता है कि भ्रूण लड़के में तब्दील होगा या लड़की में?
आमतौर पर किसी महिला को एक महीने बाद प्रेग्नेंसी का अहसास होता है. तब तक शरीर में भ्रूण बन चुका होता है जिसका आकार 6 मिलीमीटर यानी मटर के दाने से भी आधा होता है. इस वक्त तक भ्रूण की गर्दन और हाथ-पैर बनना शुरू हो जाते हैं.
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छठे से सातवें हफ्ते के बीच भ्रूण करीब एक सेंटीमीटर जितना बड़ा हो चुका होता है. यानी बिल्कुल मटर के दाने के बराबर. इस दौरान सेक्स ग्लैंड्स या रीप्रोडक्टिव ग्लैंड्स (Sex Glands) का विकास हो चुका होता है. लड़का या लड़की दोनों में ये ग्लैंड शुरुआत में बिल्कुल एक जैसे ही होते हैं. इन ग्लैंड से टेस्टीज़ बन सकती हैं जो कि टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) नाम का हार्मोन रिलीज करती है. लड़कों के लिंग का विकास इसी वजह से संभव हो पाता है.
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9वें हफ्ते के आस-पास लिंग बनना शुरू हो जाता है. ऐसा भी हो सकता है कि रीप्रोडक्टिव ग्लैंड्स ओवेरीज़ में तब्दील होने लगे. ऐसे में एस्ट्राडियॉल नाम का हार्मोन रिलीज होने लगता है. जिन देशों में भ्रूण के लिंग जांचने की इजाजत है, वहां डॉक्टर 12वें से 14वें हफ्ते के बीच इस बारे में कुछ बता पाते हैं.
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इससे पहले भ्रूण में लगातार ऐसे बदलाव हो रहे होते हैं जिससे वो लड़का भी बन सकता है या फिर लड़की भी. ये सब पूरी तरह से हार्मोन और जीन्स के खेल पर निर्भर करता है कि आखिरकार बेटा होगा या बेटी.
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यहां आपको एक और बात पर गौर फरमाने होंगे कि अगर फर्टिलाइजेशन से लेकर अब तक की प्रोसेस ठीक से न हो तो ये मुमकिन है कि X-X क्रोमोजोम्स होने के बावजूद भ्रूण में लड़का और लड़की दोनों के गुण शामिल हो जाएं. इन्हें इंटरसेक्स कहा जाता है.
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