R.Lines – Life is Okay.
पात्र का नाम: लड़का- सभ्य और लड़की- साक्षी (दोनों नाम काल्पनिक है।)
ये मेरा तेरे हिस्से की यकीन है कि मेरी मौत तुम्हें भी दर्द देगी, और तब तेरे पास केवल मेरी अच्छी और बुरी यादें होंगी, जिस पर शायद तुम पश्चताप करोगी और फिर खुशियाँ मनाओगी!
सभ्य
लंबे समय के बाद, जब एक लड़के (सभ्य) ने अपनी पुरानी दोस्त (जो की एक लड़की थी) को फोन किया और उसे परीक्षा और परिणाम के लिए शुभकामनाएं देने की बात की, तो उसने जो जवाब दिया वह अप्रत्याशित और दिल तोड़ने वाला था क्योंकि कॉल प्यार की भावना के साथ नहीं बल्कि अपने जीवन के सबसे प्यारे व्यक्ति के लिए अच्छी भावना के साथ किया गया था। लेकिन फिर भी उस लड़की (साक्षी) ने जवाब दिया था कि “I’m glad कि तुमने फोन नहीं किया।”
मैं ऐसा मानता हूँ कि चाहे हमारे पास कुछ भी हो या न हो, लेकिन हमें घमंड नहीं करनी चाहिए। चलो ये भी माना कि आपके व्यक्तिगत रिश्ते बिगड़ गए हो किसी के साथ, लेकिन उसके साथ के आपके इंसानियत के रिश्ते कायम रखने चाहिए।
दोस्त, मनुष्य जीवन ही एक मात्र ऐसा जीवन है जहां हम सही-गलत करते तो है लेकिन इसको फिर परखने की भी शक्ति सिर्फ हमारे पास ही है। हम कभी भी अपनी मर्जी से और जान बुझकर गलती तो नहीं करते लेकिन फिर भी हो जाती है। अरे जी, हम भी इंसान ही है।
क्या पता कब मेरी मौत आ जाए, किसको पता कहां और कैसे मौत लिखी है? शायद ये मौत गले में फंदे (SSR) की रूप में दिखे, शायद ये मौत रोड एक्सीडेंट (Lovely Art) के रूप में आ जाए या मौत हार्ट अटैक (SS) के जैसे हो जाए या और जैसे भी हो……. लेकिन ये कब हो जाएगा किसी को नहीं पता और इसके आने में जो दिन बचे है वो अज्ञात तो है लेकिन अजीब तो ये है कि ये अज्ञात होते भी सीमित है।
ये मेरा तेरे हिस्से की यकीन है कि मेरी मौत तुम्हें भी दर्द देगी, और तब तेरे पास केवल मेरी अच्छी और बुरी यादें होंगी, जिस पर शायद तुम पश्चताप करोगी और फिर खुशियाँ मनाओगी!
यार एक बात बोलू, आप कब तक किसी व्यक्ति से नाराज़ हो सकते हो? उसके प्रति अपने अंदर कब तक घृणा पाल सकते हो? हमें मालूम है कि जब हमसे गलतियां होती होती है तब ही हमें कुछ सीखने को भी मिलता है। और ये सत्य है।
मित्र, आप हमारी इस छोटी सी उम्र में भी आपस में बैर लेकर ही जीना चाहते है? मनुष्य के बदले भावना को समझना भी जरूरी है न?
गलतियों को भुलाकर, गलतियों पर समझाकर और गलतियों में सही राह दिखाकर भी तो जी सकते है। हम किसी के प्रति द्वेष, तो किसी के प्रति पश्चताप वाली भावना को भुलाकर भी तो जी सकते है!
मरना तो है ही, न कुछ लेकर आए है और ना ही लेकर जाना है तो फिर अपने अंदर ये सब क्यों पाले बैठे हो? क्या पता कब किसके लिए घृणा और पश्चताप लेकर चल बसे हम?
गौर कीजिएगा जरूर! जरा खुद भी समझिएगा!! किसी एक को समझाने का भी काम कीजिए!!!