अस्वीकरण
यह पूरा लेख विभिन्न सरकारी और समाचार पोर्टल स्रोतों से वास्तविक समाचार और जानकारी पर आधारित है। हमने यह विस्तृत लेख सिर्फ आपको विषय के बारे में सर्वोत्तम जानकारी प्रदान करने के लिए लिखा है। हम आपको ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस लेख की शब्दों को हमने आम भाषा में लिखा है ताकि सभी को आसानी से मतलब समझ आ सके। अंत: ये मालूम हो कि हम (मैं या हमारी वेबसाइट) सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते हैं और हम सभी अपने महान देश (भारत) के संविधान का पालन करते हैं। इसलिए हम अपने सभी पाठकों से यह भी अनुरोध करते हैं कि इस प्लेटफॉर्म के किसी भी लेख की किसी भी शब्द अथवा पंक्ति को नकारात्मक तरीके से भी न लें।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को “किसी भी पूजा स्थल के धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रखरखाव के लिए प्रदान करने के लिए एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि यह अगस्त 1947 के 15 वें दिन अस्तित्व में था, और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामले।”
ये तो हो गई इस कानून की कानूनी परिभाषा या मुख्य बातें, अब हम इसको अपनी आम भाषा में समझे तो, देखिए ये जो पूजा स्थल अधिनियम, 1991 है न, ये यह कहता है की 15 अगस्त, 1947 के दिन हमारे देश में जितने भी पूजा स्थल थे, और उसदिन उनका जो भी धार्मिक स्वरुप था, उसमे किसी भी प्रकार की धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने का अधिकार देती है यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 कानून। यानी की भारत के किसी भी धार्मिक जगह पर 15 अगस्त 1974 के दिन अगर हिन्दुओं का मंदिर था तो उसे मस्जिद या किसी और धर्म के धार्मिक स्वरुप में नहीं बदला जा सकता। और ठीक ऐसा ही बाकी सभी धर्मों और उनके धार्मिक स्थलों के लिए लागू होगी।
मुस्लिम पक्ष की कौन सी दलील ख़ारिज की गई है और बयान में क्या कहा गया है?
ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस में वाराणसी की जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। आपको बता दे कि इस केस में मुस्लिम पक्ष की दलील थी कि ज्ञानवापी पर पूजा स्थल अधिनियम, 1991 लागू होता है।
आज कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के इस दलील को ख़ारिज करते हुए कहा है मुस्लिम पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मामला यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट, 1983 के अंतर्गत आता है और इसपर सुनवाई नहीं हो सकती। फैसले में आगे वाराणसी जिला अदालत ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई पूजा स्थल अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम, 1995 और उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 में से किसी के भी द्वारा वर्जित नहीं है।
और फिर कोर्ट ने आगे कहा कि हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में पूजा का अधिकार मांगा गया है, जो कि मेरिट (गुण-दोष) के आधार पर सुनवाई योग्य है। इस मामले पर आगे की सुनवाई अब 22 सितंबर से शुरू होगी।
क्या हमारे देश में धार्मिक स्थलों के असली धार्मिक चरित्र का भी पता लगाना गैर कानूनी है?
इस सवाल का जवाब हमनें आपको इस टॉपिक के हमारे पिछले आर्टिकल में ही विस्तार से बताया था। लेकिन अब फिर से बताते है।
कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि
अब यदि आपको डिटेल्स में पढ़नी है तो यहां क्लिक करें: जानें वहीं जो वैलिड हो।
या यहां क्लिक कर डाउनलोड कीजिए – पीडीएफ