अखंड भारत – देश और धर्म सर्वोपरि
यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: सम्पूर्ण जानकारी
प्रिय पाठकों, आप अभी यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 4 – “समान नागरिक संहिता” के देश में आने और लागू होने के बाद क्या ये मामला भी कृषि कानूनों की तरह कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सकती है? को पढ़ने जा रहे है। लेकिन क्या आप इसके पहले वाले भागों को पढ़ा है? यदि हां तो आप इसको अभी पढ़ सकते है और यदि आप भी तक नहीं पढ़े है तो नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक कर पहले वाले भागों को पढ़े।
परिचय- “समान नागरिक संहिता – भारत” फुल केस स्टडी
भाग 1- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 1 – अनुच्छेद 25, 32 और 44
भाग 2- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 2 – शाह बानो केस (1985)
भाग 3- यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारत: भाग 3 – The Hindu Marriage Act, 1955 (हिन्दू विवाह अधिनियम)
अब आप आज के इस लेख (भाग 4) को पढ़ सकते है।
अस्वीकरण
इस लेख में दी गई कुछ जानकारियां भारत के संविधान से अर्जित है और जो फैसले आने की बातें है, वे सभी केवल और केवल अनुमानित बातें है। हम आपको ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इस लेख की शब्दों को हमने आम भाषा में लिखा है ताकि सभी को आसानी से मतलब समझ आ सके। अंत: ये मालूम हो कि हम (मैं या हमारी वेबसाइट) सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते हैं और हम सभी अपने महान देश (भारत) के संविधान का पालन करते हैं। इसलिए हम अपने सभी पाठकों से यह भी अनुरोध करते हैं कि इस प्लेटफॉर्म के किसी भी लेख की किसी भी शब्द अथवा पंक्ति को नकारात्मक तरीके से भी न लें।
“समान नागरिक संहिता” के देश में आने और लागू होने के बाद क्या ये मामला भी कृषि कानूनों की तरह कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सकती है?
चलिए अब बात करते है आज के सवाल पर। तो सवाल ये है कि क्या कृषि कानूनों की तरह ही “समान नागरिक संहिता” के देश में आने और लागू होने के बाद, इस पर भी कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सकती है? इसका जवाब आप आज पॉइंट्स में पढ़ेंगे।
हमारे इस सीरीज के भाग 1 में आपने पढ़ा है कि –
- अनुच्छेद 25 भारत के सभी व्यक्तियों को स्वतंत्रता का समान अधिकार देता है जिससे की कोई भी नागरिक अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए या नहीं भी करने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन इसी अनुच्छेद का इसी खंड (2) के उपखंड (क) और (ख) ये भी कहती है कि “इस अनुच्छेद में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को विनियमित या प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा जो धार्मिक अभ्यास से जुड़ा हो सकता है।” या फिर “राज्य को ऐसी कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा जो सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।”
⭐⭐ और ये जो कानून बनाने की बात हो रही है वो और सभी भारतीय को एक बराबर करने का कानून बनना है तो इससे ऐसा लगता है कि कानून बनना सही है और कोर्ट भी शायद इस दलील को स्वीकार करें।
- लेकिन हमारे देश का एक समुदाय/पक्ष इस कानून बनाने की बात को ये बताकर कि कोई व्यक्ति/संस्थान/या राज्य स्वयं भारत के संविधान के भाग 3 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों को बदलने का प्रयास कर रहा है और आर्टिकल 32 से मिले अधिकारों से सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय जाकर इसको खतम करने या रोक लगाने की मांग करेगा तो मुझे नही लगता की उनकी ये बात भी कोर्ट मानेगी। हालांकि कोर्ट सभी बातों को गंभीरता से लेगी जरूर लेकिन
⭐⭐ भारत के संविधान में एक और अनुच्छेद है जिसका नाम है Article 44 जो खुद राज्य (केंद्र सरकार/संसद) को यह बताती है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। और ये तब ही हो पाएगा जब देश के संसद के दोनों सदनों से समान नागरिक संहिता संविधान बिल पास होगा और राष्ट्रपति के मंजूरी के बाद पूरे भारत में लागू होगा।
- और तो और देशभर में 1985 से पहले भी और शाह बानो केस 1985-86 के बाद भी, देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार तत्कालिन सरकारें से अपील करती आई है कि केंद्र सरकार को देश में आर्टिकल 44 के तहत समान नागरिक संहिता पर काम करनी चाहिए और कानून बनानी चाहिए।
⭐⭐ देश की कई राज्यों के उच्च न्यायालयों ने भी समय समय इस कानून की मांग करते आ रहा है। क्योंकि भारत के किसी भी क्षेत्र में जब भी शाह बानो जैसे मामले आते है, कई बार कोर्ट्स को ऐसा लगने लगता है कि ऐसे मामलों का फैसला करना कितना आसान होता जब हमारे संविधान में इसके वो समान नागरिक संहिता वाली कानून बनी होती जिसको बनाने के लिए हमारे संविधान में पहले से ही प्रावधान मौजूद है। तो इससे भी मुझे तो यही समझ आ रही है कि ठीक एक मिनट के लिए मामला कोर्ट में जा तो सकता है लेकिन ये ज्यादा दिन तक चलेगा नहीं, इस कानून का बनाना पहले से संवैधानिक माना जा सकता है।
आपको पता है, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय के एक बेंच ने एक बार खुद ये बोला था कि –
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि जबकि संविधान के संस्थापकों ने भाग IV में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित अनुच्छेद 44 में आशा और उम्मीद की थी कि राज्य (केंद्र सरकार/संसद) भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा, लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सुप्रीम कोर्ट बेंच
एक बात ये भी कहा गया है कि शाह बानो और सरला मुद्गल मामलों में सुप्रीम कोर्ट की अपील के बावजूद यूसीसी (UCC) बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई।
प्रिय पाठकों,
अब सिर्फ एक दलील ऐसी हो सकती है किसी एक समुदाय/पक्ष के ओर से कि भाई इस कानून के जरिए हमारे अधिकारों में हस्तक्षेप या बदलाव करने की कोशिश हो रही लेकिन ऐसा दलील शायद काम भी न आए क्योंकि यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी कि समान नागरिक संहिता किसी एक धर्म, जाती या वर्ग विशेष के लिए नही बल्कि एक राष्ट्र और एक कानून के थीम पर सम्पूर्ण भारतीयों के लिए होगी। ये किसी के धार्मिक अधिकारों को खतम नही करेगा और बल्कि ये कानून सभी को एक बराबर का समान अधिकार देगा। जो भी मैंने इस भाग 4 तक जितना जाना है और आपको बताया है वो ये बात सिद्ध करती है कि अगर कोर्ट जाने का अधिकार है तो ये मामला भी जाएगा लेकिन अंत में फ़ैसला इस बिल पक्ष में आएगा। यह कोर्ट में नहीं तो लंबा चलने वाला मामला होगा और ना ही ये कृषि कानूनों जैसी मामला बनेगी जो कि कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले सके।
रंजीत जायसवाल
अब आपके अंदर एक बात जानने की बहुत ज्यादा जोश होगा कि रंजीत भाई, अब तो क्लियर और समझाकर बताओं कि आखिर – क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड / समान नागरिक संहिता / एक देश-एक कानून / Uniform Civil Code / UCC? इस सवाल का जवाब आपको अगले भाग यानी कि भाग 5 में अच्छे से पढ़ने को मिलेगा।
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